[•••" मेरी माँ "•••]
जिन्दगी मेँ कुछ पाया और कुछ खोया,
लेकिन तुझे खोना नही चाहता माँ,
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जिन्दगी ने कभी हँसाया और कभी रुलाया,
लेकिन तुझे रुलाना नही चाहता माँ,
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याद आती है बहुत मेरे बचपन की वो लोरी,
इसीलिये तेरी गोद के अलावा कही ओर सोना नही चाहता माँ,
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कितना ङाटा था तुने बचपन मेँ
अब क्यूँ नही ङाँटती तू मुझे माँ ?
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कैसे जिन्दा रह पाऊगाँ मे तेरे बगैर,
कभी फुरसत मिले तुझे तो यह बता माँ,
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जिन्दगी तुने तो मेरी रोशन कर दी,
लेकिन खुद किस अँधेरे मेँ खो गयी तु माँ,
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कभी तो खिला मुझे अपने हाथ कि रोटी,
आज कल भुख बहुत लगती है मुझे माँ,
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कहाँ हो तुम आकर लगाऔ गले से,
इस बेदास 'धान्धल' को,
ना जाने किस काश मेँ निकल जाये जाये मेरी साँसे माँ...!!